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शिवम तोमर की कविताएं

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  शिवम तोमर  कवि परिचय:  शिवम तोमर जन्म : 1995, ग्वालियर, मध्य प्रदेश कविताएं लिखते हैं। अनुवाद में रूचि फ़िलहाल अंग्रेजी साहित्यिक पोर्टल “पोयम्स इंडिया” के लिए संपादन करते हैं। आज का समय एक अजीबोगरीब अवसाद का समय है। सब कुछ है पर  रातों की नींद ही गायब है।  सब कुछ है पर  जीवन तनाव के जंजालों से भरा हुआ है और खुशी नदारद है। लेकिन यही पूरा सच नहीं है। देखने पर, महसूस करने पर,  खोजने पर खुशी कहीं भी मिल सकती है। छोटी छोटी बातें, छोटे छोटे छोटे अवसर हमें ये महत्त्वपूर्ण पल उपलब्ध कराते हैं। यह अलग बात है कि जीवन की आपाधापी में हम इन्हें महसूस नहीं कर पाते। एक बच्ची की खुशी गुब्बारे को उड़ाने में है। युवा कवि शिवम तोमर इन दृश्यों की तह में जाते हुए लिखते हैं "एक गुब्बारे को हवा में तैरता रखने के लिए/ जिस तरह एक नन्हे शरीर का सामर्थ्य और संकल्प उसके पैरों और हाथों में स्पंदित होता है/ लगता है फिलहाल दुनिया का सबसे ज़रूरी काम यही है"। शिवम इस जरूरी काम को रेखांकित करने वाले कवि हैं। शिवम ने अरसा पहले पहली बार के लिए ये कविताएं भेजी थीं लेकिन अपरिहार...

प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पेशेवर चटोर'

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प्रचण्ड प्रवीर  आज का समय आपाधापी का समय है। किसी के पास समय ही नहीं कि थम कर कोई काम कर सके या उसके बारे में सोच भी सके। ऐसे में कई एक परंपराएं, हुनर लुप्त होते जा रहे हैं। यह लुप्त शब्द आज हमारी वास्तविकता बन चुकी है। रोज न जाने कितनी कीड़े मकोड़ों, चिड़ियों और जीवों की प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। रोज न जाने कितनी बोलियां, भाषाएं और लिपियां लुप्त होती जा रही हैं। ऐसे दौर में प्रवीर ने अपनी कहानी पेशेवर चटोर में स्वाद के खोते जाने की बात की है, जिसकी चर्चा आमतौर पर नहीं होती। प्रवीर लिखते हैं 'मोहन का जोश खतम नहीँ हुआ था, वह कहने लगा, “आज के दिन कोई रेस्तराँ मेँ खाने जायेगा और फरमाइश करेगा कि येल्लो दाल दीजिये, ब्लैक दाल दीजिये। किसी को मूंग, मसूर, अरहर पता नहीँ है। उड़द और चना दाल के स्वाद का अन्तर भी नहीँ पता है। ऐसे पढ़े-लिखे लोग पर जितना हँसा जाय कम है। आज इन सबको गाइड करने के लिये गूर्मे अर्थात् पेशेवर चटोर की जरूरत है।' आज यह बात भले ही हास्यास्पद लगे लेकिन यह हमारे समय का यथार्थ है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कल की बात के अन्तर्गत प्रचण्ड प्रवीर की कहानी ...

जीवन सिंह का आलेख 'श्रम और सौंदर्य की समकालीन रचना'

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  डी एम मिश्र  गजल का विषय आमतौर पर प्रेम (आध्यात्मिक और रोमांटिक दोनों) होता है।   यह प्रेम आध्यात्मिक या रोमांटिक कोई भी हो सकता है। हिन्दी ग़ज़ल शुरुआत बीसवीं सदी में निराला से होती है। हिन्दी इलाके के ज़मीनी जन-सरोकार पहली बार उनकी ग़ज़लों में आते हैं। इसके बाद की हिन्दी गजलें उस राह पर चल पड़ीं जो जन पक्षधरता की राह कही जा सकती है। दुष्यन्त कुमार और अदम गोंडवी ने इस धारा को परवान चढ़ाया। डी एम मिश्र उसी धारा के गजलकार हैं जिन्होंने अपनी गजलों के माध्यम से अपने सरोकारों को सपष्ट किया है। आज डी एम मिश्र का जन्मदिन है। पहली बार की तरफ से उन्हें जन्मदिन की बधाई एवम शुभकामनाएं।  डी एम मिश्र के गजलों की आलोचना करते हुए जीवन सिंह लिखते हैं -  "डी एम मिश्र न कबीर हैं, न ग़ालिब हैं, न मीर और न ही मोमिन हैं। वे कुछ हैं तो सिर्फ डी एम मिश्र हैं। और यही एक शायर या कवि को होना भी चाहिए। जिस कवि के यहाँ उसकी अपनी कवि-व्यक्तित्व-समृद्धि  नहीं है, वह दूसरों के पीछे चलने वाले एक अनुगामी से अधिक नहीं होता। कविता की विविधमयी रचनात्मकता ही उसे निजता प्रदान करती है। यह अल...

शशिभूषण मिश्र का आलेख 'एक सदी की बीहड़ यात्रा में लेखक का जीवन'

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  मोहन राकेश  लेखन कर्म को आमतौर जितना आसान समझ लिया जाता है उतना वह होता नहीं। यह जिम्मेदारी भरा काम होता है जिसका मुख्य दायित्व एक बेहतर समाज की स्थापना होती है। मोहन राकेश लेखन के साथ-साथ लेखक के  व्यक्तित्व को भी देखने परखने के पक्षधर हैं क्योंकि लेखक का व्यक्तित्व कहीं न कहीं उसकी रचनाओं में उभर कर आता है।  इस क्रम में  वे लिखते हैं कि "लेखक के व्यक्तित्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता, मसलन यह देखना जरूरी हो जाता है कि उस लेखक का अपने समय में किस तरह का हस्तक्षेप था! उसकी लेखकीय पक्षधरता क्या रही है! साहित्यिक परंपरा को ले कर उसकी समझ क्या है! उसने दूसरे लेखकों को कितना पढ़ा है और उनकी रचनाओं के बारे उसकी रायशुमारी क्या है! अपने समकालीनों के बारे में वह क्या सोचता है! साहित्य और संस्कृति को लेकर उसका आलोचकीय विवेक क्या है क्योंकि आलोचकीय विवेक के बिना वह अपने समय और समाज का वास्तविक रेखांकन नहीं कर सकता।" यह वर्ष मोहन राकेश का जन्मशती वर्ष है। युवा आलोचक शशिभूषण मिश्र ने 'अन्वेषा' पत्रिका में मोहन राकेश की आलोचकीय दृष्टि पर महत्त्वपूर्ण आलेख लिखा है जिसे हम ...